लखनऊ । आज दिनाँक:- 14-4-2020 को अखिल भारतीय बढ़ई महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष विश्राम शर्मा ने कहा बाबा साहब भीम राव अंबेडकर का जन्म मध्य प्रदेश के रत्नागिरी जिले के महू गांव में दिनाँक-14 अप्रैल 1891,को हुआ। इनके पिता रामजी राव मिलिट्री में सूबेदार थे। इनको पढ़ाने के लिए कई विद्यालयों में नाम लिखाने के लिए गये। अछूत के नाते किसी विद्यालय में इनका नाम नहीं लिखा जा रहा था। किसी तरह से एक विद्यालय में प्रधानाध्यापक जी ने नाम लिखने के लिये तैयार हुए, लेकिन उन्होंने एक शर्त लगाई की भीमराव अछूत है वह विद्यालय के कमरे में नहीं दरवाजे पर बैठकर पढ़ेगा, अगर पढ़ना चाहे तो मैं नाम लिख लुंगा।
इस पर पिताजी तैयार हो गये।किसी तरह नाम लिखा गया। पढ़ाई शुरू हुई प्राइमरी व् जूनियर हाई स्कूल पढ़ने के बाद ऊंची शिक्षा लेने के लिए पैसे का आभाव होने के कारण बहुत सी दिक़्क़तें आई। उनकी माता जी घर के बर्तन व् गहने बेचकर हाई स्कूल में इनका नाम लिखवाया।
"अभाव में ही आदमी कुछ बनता है"। यही से वे कुछ कर गुजरने की मन में ठानी, इतनी मेहनत व् लगन से पढ़ाइ की, कि हाई स्कूल बोर्ड की परीक्षा टॉप कर गए उसके बाद गांव के लोगों ने एक सम्मान समारोह का कार्यक्रम रखा, लेकिन इनके पिताजी नहीं चाहते थे कि बेटे का कोई सम्मान हो क्योकि बेटे का दिमाग खराब हो जाएगा। लेकिन चाचा को उन लोगों ने समझा लिया सम्मान समारोह किया। उस सम्मान समारोह में उन्हें भगवान बुद्ध के विचार पर लिखी किताब को दिया गया।
सम्मान में मिली हुई किताब को उन्होंने बहुत ही ठीक से पढ़ा । उस किताब से उन्हें बहुत से नए विचार मिल गये। वे ऊँची शिक्षा लेने के लिए विदेश चले गये अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में अपना नाम लिखवाया। वहां विद्यालय में छूत-अछूत का कोई भेद नहीं था सबको बराबरी का दर्जा था।
एक साथ बैठना, खाना, रहना, इनको लगा कि कहीं बहुत बड़ी गुलामी से आजादी के तरफ मैं आ गया वह देश इनको बहुत अच्छा लगा।अपने यहाँ अछूत होने के नाते इनको बहुत अपमानित होना पड़ता था। उसके बाद इन्होंने अपने पूरे समाज के लोगों को कैसे उद्धार किया जाय।
उसके लिए यह अपने मिशन में लग गये। इन्होंने अंग्रेजी राज में साइमन कमीशन से अपने लोगों की वकालत कर अछूत वर्ग के लोगों के लिए 22.50% आरक्षण सरकारी सेवाओं से लेकर राजनीति के क्षेत्र में अपना अधिकार ले लिया।
वे बहुत बड़े विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ शिक्षाविद व समाज सुधारक थे। अछूतों के भेदभाव के विरुद्ध उन्होंने बड़े स्तर पे कई अभियान चलाया।
महिलाओं के विकास के प्रबल पैरोकार थे।उन्होंने नारा दिया-"शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो।"शिक्षा उस शेरनी का दूध है जो पियेगा ,वही दहाड़ेगा" और इतिहास गवाह है।जहाँ अर्थशास्त्र व् नैतिकता के बीच संघर्ष होता है। वहा जीत अर्थशास्त्र की होती है।
जब देश आजाद हुआ उस समय प्रधानमन्त्री पंडित जवाहरलाल नेहरू थे। एक प्रस्ताव लाया गया इस प्रस्ताव के द्वारा भारत का नया संविधान बनाना चाहिए प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उस प्रस्ताव का समर्थन किया। नए संविधान बनने पर पुराना रद्द कर दिया जाएगा।
प्रस्ताव में संविधान बनाने के लिए एक अलग समिति बनाने का प्रस्ताव रखा, प्रधानमंत्री जी ने उनके नयी समिति बनाने के प्रस्ताव का समर्थन किया। और उन्होंने कहा डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया जाय, क्योकि देश-विदेश के सभी संविधानों की उन्हे बहुत अच्छी जानकारी है। इन्होंने देश विदेश में ऊँची पढ़ाई की है। ये क़ानून के महाविद्वान है ।नए संविधान ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉक्टर अंबेडकर साहब को ही बनाया जाय।ये महाविद्वान है ।यही नया सविधान बनायेंगे।समिति के अध्यक्ष के लिये इनका नाम तय हो गया।
तब बाबा साहब को बताया कि आप ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष बना दिये गये। बाबा साहब नया संविधान बनाने में पूरी तरह व्यस्त हो गए। उन्होंने लगभग सभी देशों के संविधान का अध्ययन किया। उनकी यही कोशिश थी कि संविधान का कोई भी धारा ऐसी छूट न जाए जिसके लिए संसार को यह कहना पड़े कि भारत का संविधान बहुत सख्त है।
उन्होंने रात दिन मेहनत कर बहुत ही जल्द संविधान को लिखकर प्रधानमंत्री महोदय को सौंप दिया। संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को संविधान अपनाया गया था।अपने काम को पूरा करने के बाद, बोलते हुए, आम्बेडकर ने कहा:
मैं महसूस करता हूं कि संविधान, साध्य (काम करने लायक) है, यह लचीला है पर साथ ही यह इतना मज़बूत भी है कि देश को शांति और युद्ध दोनों के समय जोड़ कर रख सके। वास्तव में, मैं कह सकता हूँ कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नही होगा कि हमारा संविधान खराब था बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य अधम था।
उस संविधान को लोगों ने खूब ठीक से अध्ययन किया और
प्रधानमंत्री जी ने अपने भाषण में कहा कि डॉक्टर अंबेडकर संविधान के शिल्पकार है। यह नया संविधान इन्ही की देन है। इनका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। यह बहुत बड़े महापुरुष हैं। देश के सभी नेताओं ने इनकी खूब प्रशंसा की।
26 जनवरी 1950 को बाबा साहब का लिखा संविधान भारतीय संविधान के रूप में जनता पर लागू किया गया। आज यह दिन गणतंत्र दिवस के रूप में पूरे देश में समारोह पूर्वक मनाया जाता है। बाबा साहब ने कहा-"पहले रानी के कोख से राजा पैदा होता था। अब नये संविधान में जनता के वोट से राजा बनेगा।"संविधान को लिखकर बाबा साहब देश व् विदेश में चर्चा के विषय बन गए। इस काम को करके वे आज देश दुनिया में अमर हो गए।
आज इस संविधान के ऊपर आजादी के इतने दिनों के बाद खतरा मंडरा रहा है। आज जरूरत है हम सभी लोगों को बाबा साहब के संविधान को बचाना। देश का यह संविधान देश की एकता, अखंडता, आपसी भाईचारा, समता ,सामाजिकता, न्याय, से भरा है।इसकी हमे रक्षा करने की।
वे अपने जीवन भर शुरु से लेकर अंतिम समय तक छुआ-छूत मिटाने, समाजिक सम्मान दिलाने के लिए लड़ाई लड़े ,संघर्ष किया। अंत समय में हिन्दू धर्म से छुब्ध होकर वे बौद्ध धर्म अपना लिये।
आज जरूरत है हमे इनके विचारों पर चलने की।
जन्म दिवस पर इन्हे श्रद्धा सुमन अर्पित करते किए। महान आत्मा को शत् शत् नमन् ।
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